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हिन्दू (ब्राह्मण धर्म) धर्म के प्रति विद्रोह आखिर क्यों ? |
पूना समझौते के बाद बाबा साहब के गांधी और कांग्रेस से उठा विश्वास :-
पूना समझौते (Puna Pact) के बाद बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को थोड़ा विश्वास हो गया था कि, गांधी और कांग्रेस तथा हिंदू महासभा के प्रयासों से दलित वर्ग को हिंदू समाज में सम्मानजनक स्थान मिल जाएगा । लेकिन बाबा साहब का यह विश्वास जल्दी ही टूट गया, जब महात्मा गांधी ने दलितों को हरिजन नाम की गाली से संबोधित करना शुरू कर दिया । गांधी जी ने उसी वर्ष हरिजन सेवक संघ (Harijan Sevak Sangh) की स्थापना की थी, हरिजन सेवक संघ का अध्यक्ष गांधी ने उद्योगपति घनश्याम दास बिडला को बनाया था । गांधी जातिभेद और वर्ण व्यवस्था पर सदैव समर्थन करते रहें । वर्णाश्रम Varnashram को गांधी हिंदू धर्म का एक अभिन्न और महत्वपूर्ण अंग मानते थे । गांधी ने अपनी पत्रिका यंग इंडिया में जाति प्रथा को श्रेष्ट बताया था । गांधी ने लिखा था कि, जाति प्रथा (Caste system) से समाज में स्थिरता कायम रहती है, गांधी व्यक्तियों द्वारा पैतृक व्यवसाय Ancestral occupation करने के सिद्धांतों को सही मानते थे ।
बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जल्द ही समझ गए कि पूना पैक्ट दलितों और सवर्णों के बीच व्याप्त दूरी को मिटाने का समझौता नहीं है । यह समझौता गांधी ने दलितों के राजनीतिक अधिकार छीनने (Snatch political rights) के लिए किया है । 3 वर्ष बीत जाने के बाद भी गांधी कांग्रेस और हिंदू महासभा ने दलितों के उत्थान के लिए ऐसे संतोषजनक प्रयास नहीं किए जिससे दलित वर्ग हिंदू वर्ग का अभिन्न अंग बन जाये ।
बाबा साहब दलित वर्ग को सामाजिक, आर्थिक ,राजनीतिक हर स्तर पर बराबरी और समानता का व्यवहार चाहते थे । उनको 1935 तक पूरा विश्वास हो गया था कि ब्राह्मण धर्म जिसे हिंदू महासभा और कांग्रेस कुछ वर्षों से नए नाम हिंदू धर्म के नाम से पुकारने लगी है । इस हिंदू धर्म में ब्राह्मण के सिवाय किसी भी वर्ग या जाति को कभी समानता नहीं मिल सकती क्योंकि हिंदू धर्म का सामाजिक उद्देश्य ही असमानता Inequality है, हिंदू धर्म कई मंजिली इमारत जैसा है, जिसमें ना तो दरवाजे हैं ,और ना ही सीड़ियाँ। जो जिस मंजिल पर पैदा हुआ है उसे उसी मंजिल पर मरना है । यानि यदि कोई व्यक्ति ब्राह्मण जाति में पैदा हुआ है तो कितने भी खराब काम करने के बाद भी वह ब्राह्मण ही बना रहेगा, और सामाजिक स्तर (Social level) पर उस ब्राह्मणों का सम्मान भी मिलता है रहेगा । लेकिन यदि कोई व्यक्ति शूद्र अछूत समाज में पैदा हुआ है ,तो उसे जीवन भर उसी जाति में रहना पड़ेगा, और जीवन भर जातिगत अपमान भी सहना पड़ेगा। बाबा साहब को पूरा विश्वास हो गया था कि जात पात तोड़क मंडल जैसी सामाजिक संस्थाओं Social institutions के प्रयास कभी सफल नहीं होंगे, क्योंकि हिंदू धर्म उस जहर के समान है, जिस जहर को अमृत बनाना संभव नहीं है ।
बाबा साहब ने की हिन्दू छोड़ने की घोषणा :-
इसीलिए अंत में बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने 13 अक्टूबर सन 1935 में बहिष्कृत हितकारिणी सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि, मेरे अभागे भाइयों और बहनों जब मैं मुड़कर अपने आंदोलन के 10 सालो पर नजर डालता हूं ,तो भविष्य के लिए चिंतित हो जाता हूं, बहुत हो चुका अब हम चुपचाप नहीं बैठेंगे समय आ गया है, जब हम इन दमन और तिरस्कार Disdain की जंजीरों को तोड़ दे, जात-पात के इस दलदल से बाहर निकल आइये, जिसने हमें बद से बदतर जिंदगी दी । सामाजिक बेड़ियों को तोड़कर बाहर निकल आइये, और चुन लीजिए ऐसे धर्म को जो हमें बेहतर अवसर और समानता का अधिकार दे, दुर्भाग्य से मैं एक हिंदू अछूत के रूप में पैदा हुआ हूं, इसे रोकना मेरी शक्ति से बाहर था। लेकिन इन अपमान जनक Offensive परिस्थितियों में जीने से इनकार करना मेरी शक्ति में शामिल है। हालांकि मैं हिन्दू पैदा हुआ हूं लेकिन मैं भरोसा दिलाता हूं आपको कि एक हिंदू के रूप में हरगिज नहीं मरूँगा ।
हिंदू धर्म त्यागने की ऐतिहासिक घोषणा के बाद बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने संसार के सभी धर्मों का अध्ययन किया और 21 साल बाद बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला किया ।
विचारोत्तेजक आलेख।
ReplyDeleteThank you meme
DeleteGood
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