Wednesday 19 September 2018

आरक्षण एक सोच तथा गलतफहमी PART 2

     आरक्षण एक सोच तथा गलतफहमी PART 2

Reservation in india
आरक्षण एक सोच तथा गलतफहमी PART 2
देश आजाद होने के बाद देश का नया संविधान लिखते समय भारत के संविधान निर्माताओं ने अपनी मानवतावादी और समानतावादी सोच के कारण लोगों को संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता का अधिकार दिया और अनुच्छेद 19 के तहत स्वतंत्रता का अधिकार दिया लेकिन प्राचीन काल में हुए धार्मिक अन्याय के कारण दलित वर्ग पिछड़ा वर्ग, आदिवासी वर्ग ,तथा सभी वर्ग की महिलाएं हर दृष्टि से पिछड़े हुए थे । शोषित वर्ग संपन्न वर्ग की बराबरी नहीं कर पा रहे थे ।
इसीलिए संविधान निर्माताओं ने अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण और संरक्षण की व्यवस्था की । जिस तरह माता-पिता अपने सबसे कमजोर बच्चे का ज्यादा ध्यान रखते हैं । ज्यादा अच्छा खाने को देते हैं । ताकि दूसरे मजबूत और हस्ट पुष्ट बच्चे की तरह कमजोर बच्चा हष्ट पुष्ट हो  जाये । इसी सोच के तहत बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजातियों के लिए सरकारी नौकरियों में उनकी संख्या के अनुपात में आरक्षण प्रदान किया ।
संविधान सभा में कई सदस्यों ने अन्य पिछड़े वर्ग के लिए भी आरक्षण की मांग की  थी । और बाबा साहब भी चाहते थे कि पिछड़ा वर्ग को भी आरक्षण की सुविIधा प्रदान की जाय लेकिन घोर विरोध के कारण बाबा साहब इस मांग को तुरंत पूरा नहीं कर सके । लेकिन संविधान में अनुच्छेद 340 बनाकर पिछड़ा वर्ग आयोग बनाने की व्यवस्था की ताकि आयोग सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशाओं और जिन कठनाइयों को वे झेल रहे है उनका पता लगाकर ,पिछड़े वर्ग की दशा को सुधारने के लिये सरकार से सिफारिश कर सके ।
बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने संविधान के अनुच्छेद 330 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए लोकसभा में उनकी संख्या के अनुपात में स्थान आरक्षित किये तथा अनुच्छेद 332 में राज्य विधान सभाओ में इनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान सुरक्षित किये राजनैतिक आरक्षण की समय सीमा 10 वर्ष रखी गई थी । यह राजनीतिक आरक्षण 10 वर्ष में अनुच्छेद 334 में संशोधन करके बढ़ा दिया जाता है ।
प्राचीन काल कि भेदभाव तथा अन्याय पूर्ण धार्मिक व्यवस्था के कारण पिछड़ा वर्ग हर क्षेत्र में इतना पिछड़ गया था कि स्वतंत्रता  के बाद तथा संविधान में समानता का अधिकार मिलने के बाद भी पिछड़ा वर्ग सामान्य वर्ग की तुलना में बहुत अधिक पिछड़ा हुआ था । इसी  पिछलेपन को दूर करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 340 के अनुसार एक आयोग का गठन किया गया जिसे मंडल आयोग कहा जाता था । इस आयोग की सिफारिशों को 1989 में बनी जनता दल की सरकार ने लागू किया और और अन्य पिछड़े वर्ग में आने वाली जातियों को सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण की सुविधा प्रदान की यही से अन्य पिछड़े वर्ग को आरक्षण मिलने की शुरुआत हुई मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़े वर्गों को 14% आरक्षण दिया गया है और कई  राज्यों में प्रदान आरक्षण 27 प्रतिशत से कम है ।1993 से पहले ग्राम पंचायतों में अक्सर बड़े किसान ही सरपंच बना करते थे । यही हाल शहरी निकायों में था । क्योंकि पंचायतों व शहरी निकायों में पिछड़े हुये नागरिकों के किसी वर्ग को आरक्षण प्राप्त नहीं था । लेकिन 1993 में संविधान के अनुच्छेद 243 में संशोधन करके अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग को विभिन्न पदों में आरक्षण प्रदान किया गया तथा सामान्य वर्ग सहित सभी वर्ग की महिलाओं को प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थान आरक्षित किये गये ।
संविधान के अनुच्छेद 243 में तीन स्तरों की पंचायतों के सदस्यों प्रधानों तथा अध्यक्षों के कम से कम एक तिहाई स्थान सामान्य वर्ग की महिलाओं सहित सभी वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए ।  ये पद पंचायतों में अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से आवंटित किए गए इसी तरह चक्रानुक्रम से प्रत्येक नगर पालिका में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की संख्या के  कम से कम एक तिहाई स्थान सामान्य वर्ग की महिलाओं सहित सभी वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए इस तरह स्थानीय निकायों में आरक्षण की शुरुआत हुई ।
लेकिन अभी तक 72 साल की आज़ादी के बाद भी कमजोर वर्ग इतना मजबूत और संपन्न नहीं हुआ है कि संपन्न वर्ग की हर स्तर पर बराबरी कर सकें ।
इसका एक कारण यह भी है, कि केंद्र और विभिन्न राज्यों में शासन करने वाली अधिकतर पार्टियां कमजोर वर्ग को संपन्न करना नहीं चाहती यही एक  कारण हैं कि आरक्षित पद अक्सर खाली रह जाते हैं । जबकि आरक्षण वर्ग के लाखों नौजवान बेरोजगार घूम रहे हैं यदि सरकारों की नियत सही होती तो सरकार ऐसे उपाय करती जिससे आरक्षित कोटे का कोई पद खाली नहीं रह पाता ।
लेकिन सरकार ने ऐसे प्रयास नहीं किए जिससे आरक्षित वर्ग का सामाजिक शैक्षणिक एवं आर्थिक पिछड़ापन खत्म हो सके । यही एक कारण है कि आरक्षित वर्ग जिसकी जनसंख्या करीब 65% है लेकिन सरकारी नौकरियों में आरक्षित वर्ग की भागीदारी 13% हो पाई है इसलिए मेरे हिसाब से जब तक कमजोर वर्ग सामान्य वर्ग की तरह हर स्तर पर बराबरी न कर ले तब तक आरक्षण और संरक्षण लागू रहना चाहिए ।
मेरा तो यह भी मानना है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय अनुसार 50% तक आरक्षण की सीमा को हटाने के लिए भारतीय संविधान में संशोधन करके सामान्य वर्ग के गरीबी के नीचे रहने वाले व्यक्तियों को भी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए तथा संसद और विधानसभाओं में स्थानों के लिए महिला आरक्षण बिल जो संसद में लंबित है जल्दी पास होना चाहिए तथा पदोन्नति में आरक्षण बिल जो संसद में लंबित है उसे भी जल्दी पास करना चाहिए तथा ऐसा कानून .बने जिससे आरक्षण का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को दंडित किया जा सके ।
अमेरिका में भी काले रंग के प्रजाति के अमेरिकी नागरिकों को समानता और बराबरी पर लाने के लिए आरक्षण दिया गया है ।
आरक्षण प्राचीन समय से धार्मिक ग्रंथों द्वारा मिली सामाजिक और धार्मिक असमानता की बीमारी को समाप्त करने का संवैधानिक उपचार हैं । यह आरक्षण रूपी दवा कड़वी जरूर है लेकिन यही एक रास्ता है जिस से देश में से सामाजिक असमानता की बीमारी को समाप्त किया जा सकता है । इसलिए इस देश के सामान्य नागरिकों को दवाई के गुणों को और अच्छाइयों को देखना चाहिए ना कि दवाई के कड़वेपन को। ब्राह्मण सहित सभी वर्ग की  महिलाये ने पिछड़ा वर्ग आदिवासी और दलितों ने हजारों बरसों से गुलामी अपमान और अभाव का जहर पिया है इसलिए सामान्य वर्ग को आरक्षण रूपी लेकिन समाज के लिए लाभदायक इस कड़वी दवा को जरूर स्वीकार करना चाहिए ।
   जय भीम , जय भारत
लेखक :- भोलाराम अहिरवार
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Rahul Bouddh

Jai Bheem My name is Rahul. I live in Sagar Madhya Pradesh. I am currently studying in Bahujan Awaj Sagar is a social blog. I publish articles related to Bahujan Samaj on this. My purpose is to work on the shoulders from the shoulders with the people who are working differently from the Bahujan Samaj to the rule of the people and to move forward the Bahujan movement.

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