सबसे आसान भाषा में समझिये आखिर है आरक्षण
आरक्षण क्या है |
जय भीम साथियों
आरक्षण विषय पर बहुजन आवाज सागर पर पहले भी लिखें लिखे हैं यह लेख बहुजन समाज के लोगों की डिमांड पर सरल भाषा में समझाने के लिए यह लेख देखा है पहले के लोगों को पढ़ने के लिए आर्टिकल के नीचे लिंक पर जाकर वह लेख पढ़ सकते हैं ।
आरक्षण एक ऐसा देश है जिस पर सैकड़ों वीडियो लेख बनाए जा सकते हैं मैंने इस वीडियो तथा लेख में आरक्षण क्या है इस पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है ।
आपने देखा होगा कि भारतीय रेलवे और संसार के अन्य देशों में रेलवे विकलांगों के लिए अलग-अलग कोच डिब्बे का इंतजाम करती है । उस आरक्षित डिब्बे में केवल विकलांग व्यक्तियों को ही यात्रा करने दी जाती है तथा केवल कमजोर महिलाओं को ही यात्रा करने देते हैं, हट्टे कट्टे पुरुषों को कोच में यात्रा नहीं करने दी जाती है । यदि कोई हट्टा कट्टा पुरुष उस कोच में यात्रा करता हुआ पकड़ा जाता है तो रेलवे उस व्यक्ति का जुर्माना करती है , तथा ₹500 का जुर्माना चालान काटती है, जुर्माना ना देने पर एक माह की सजा का भी प्रावधान है ।
सरकार यह व्यवस्था इसलिए करती है, क्योंकि देश सबका है ताकतवर का भी और कमजोर का भी और विकलांगों का भी, विकलांग और कमजोर महिलाएं भी ट्रेन में यात्रा कर पाये इसलिए आरक्षित कोच की व्यवस्था करना आवश्यक है । क्योंकि ज्यादा स्टेशन पर यात्रियों की भीड़ पड़ती है तो, जो फर्स्टपोस्ट पुरुष ताकतवर है, पहले की सीट पर कब्जा कर लेते हैं और कमजोर मुंह ताकते रहते हैं,यदि आरक्षित कोच या डब्बा की व्यवस्था नहीं होती तो ताकत वालों की भीड़ में विकलांग और कमजोर स्टेशन पर ही रोते रह जाते , पता स्टेशन पर ही छूट जाते ।
जब इस देश में अंग्रेज आए तो उन्होंने न किसी को आरक्षण दिया और न ही किसी पर प्रतिबंध लगाए तो भी कमजोर वर्ग के व्यक्ति अंग्रेजी राज्य में सरकारी नौकरियों में पहले प्रवेश नहीं कर पाए ।
अंग्रेजी सरकार में कमजोर की भागीदारी न के बराबर थी, जबकि बड़े पैमाने पर सवर्ण में लोग नौकरियों में भर्ती हो गए । तथा तहसीलदार पटवारी बाबू वकील पुलिस और सेना में भर्ती हो गये ।
“इस व्यवस्था में सबसे पहले बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने समझा उन्होंने सबसे पहले 1932 में इंग्लैंड के गोलमेज सम्मेलन में कमजोर वर्ग के लिए राजनीति और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग की ।”
बाबा साहब सोचते थे कि ऐसा ना हो कि विकास की रेलगाड़ी पटरी पर से दौड़ती निकल जाए और भारत का कमजोर वर्ग स्टेशन पर ही बिलखता रह जाए ।
जब बाबा साहब को संविधान लिखने का मौका मिला तो उन्होंने कांग्रेस के भारी विरोध के बावजूद भी कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था की ताकि देश के सभी नागरिक अपनी उन्नति कर सके तथा देश के विकास में अपना योगदान दे सकें ।
मेरे हिसाब से या मेरी राय में आरक्षण कमजोर वर्ग से उनका अपना हिस्सा अधिकार ताकतवर न छीन पाए वह सा उसी कमजोर को मिले , इसका इंतजार या व्यवस्था करना है संवैधानिक आरक्षण है ।
अब बहस इस बात की हो रही है कि आरक्षण रहना चाहिए या समाप्त हो जाना चाहिए । इस पर मेरी राय है कि सामाजिक विकलांगता जैसे सामाजिक विषमता कहते हैं उसे समाप्त करो आरक्षण अपने आप समाप्त हो जाएगा ।
विकलांगों के आरक्षण डिब्बे समाप्त करने के लिए देश में से विकलांगता समाप्त करनी पड़ेगी तथा राजनीति और सरकारी नौकरियों में प्राप्त आरक्षण समाप्त करने के लिए देश में सामाजिक विकलांगता जिसे सामाजिक पिछड़ापन कहते हैं उसे समाप्त करना पड़ेगा और सामाजिक पिछड़ापन समाप्त करने के लिए जातियां समाप्त करनी पड़ेगी । जिस तरह विकलांगता समाप्त करने के लिए पल्स पोलियो अभियान चलाया गया उसी तर्ज पर जातियां समाप्त करने के लिए जाती छोड़ो अभियान चलाना पड़ेगा।
इसके शुरुआत में सरकार को ऐसा कानून बनाना पड़ेगा किस जाति और धर्म लिखने वालों द्वारों के नामांकन रद्द होने चाहिए ,वे चुनावी भी नामांकन हो या सरकारी नौकरियों का ।
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Jai Bheem
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