Wednesday 12 September 2018

आरक्षण एक सोच तथा गलतफहमी PART 1

Reservation Policy
आरक्षण एक सोच तथा गलतफहमी PART 1

  आरक्षण एक सोच तथा गलतफहमी PART 1

आरक्षण एक ऐसा विषय है जिस विषय पर सबसे ज्यादा चर्चा और राजनीति होती है । आरक्षण लगभग हर चुनाव में  किसी ना किसी रूप में चुनावी मुद्दा रहता है आरक्षण के
मुद्दे पर राजनैतिक दल चुनाव हारते और जीतते रहते हैं। आरक्षण का मूल उद्देश्य विभिन्न वर्गों के बीच में व्याप्त असमानता को दूर कर समानतावादी समाज की स्थापना करना है। हमारे भारत देश में प्राचीन काल (पुराने समय) से ही भेदभाव पूर्ण और अन्याय पूर्ण वर्ण व्यवस्था बना दी गई थी। समाज को अवैज्ञानिक (बेतुका) तौर पर चार भागों या वर्णों में बांट दिया गया था। यह वर्ण थे (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य,और शुद्र) वेदों में और धार्मिक पुस्तकों में शूद्रों को केवल एक ही अधिकार दिया गया था। वह अधिकार है तीन वर्णों की बगैर स्वार्थ के सेवा करना। धार्मिक पुस्तकों में शूद्र वर्ण को नीच वर्ण कहकर कई जगह उसका घोर अपमान किया गया है। जैसे कि तुलसीदास ने रामचरित-मानस के पेज क्रमांक 986 में चौपाई नंबर 3 में लिखा है।
जे वरनाधम तेली कुम्हारा। स्वपच किरात कोल कलवारा।।
नारि  मुई गृह सम्पति नासी । मूड़ मुड़ाइ होहिं सन्यासी।।
ते विप्रन्ह सन आपु पूजवाहि। अभय लोक निज हाथ नासवहिं ।।”
अर्थात:-  तेली ,कुम्हार चांडाल, भील ,कोल,और कलवार आदि जो वर्ण में नीचे है, स्त्री के मरने पर अथवा घर की संपत्ति नष्ट हो जाने पर सिर मुंडवाकर संयासी हो जाते हैं। वे अपने को ब्राह्मणों से पुजवाते है। और अपने ही हाथों दोनों लोक नष्ट करते हैं।

पुराने समय में वेदों और धार्मिक पुस्तकों को संविधान का दर्जा प्राप्त था । इन्हीं धार्मिक पुस्तकों में लिखे अनुसार राजा राज्य करते थे आरक्षण की शुरुआत इसी काल  से मानी जाती है ।
मनुस्मृति के अनुसार पुरोहित के पद, राजा के प्रमुख सलाहकार, दंडाधीश के पद, तथा मंत्रियों के पद, ब्राह्मणों के लिए आरक्षित थे सभी महत्वपूर्ण पद ब्राह्मणों के लिए सुरक्षित थे सारे मंत्री ब्राह्मण ही होते थे। गैर ब्राह्मण जातियां बड़े पदों पर नहीं पहुंच सके इसलिए शिक्षा पर एकाधिकार जमाये रखने के लिए विधान बनाया गया । हिंदू समाज के निम्न वर्गों के लोगों तथा ब्राह्मण सहित सभी वर्गों की  महिलाओं के लिए पढ़ाई लिखाई अपराध घोषित कर दिया जिसका उल्लंघन करने पर कठोर दंड का प्रावधान था ।
मनुस्मृति के भाग 2 के श्लोके नंबर 67 में लिखा है:-
श्लोक:-
वैवाहिको स्त्रींणा: संस्कारो वैदित स्मृत।
पति सेवा गुरौ वासो गृहार्थी अग्नि परिक्रिया।।

अर्थात:- जैसे शूद्रों के लिए गुरु की दीक्षा (जनेऊ संस्कार) करना मना है । उसी प्रकार स्त्रियों के लिए भी पढ़ना-पढ़ाना गुरु दीक्षा लेना मना है ।

प्राचीन काल में ऐसी भेदभाव पूर्ण शासन  व्यवस्था तथा शिक्षा के अभाव के कारण महिलाएं (सभी वर्णों की) आदिवासी, पिछड़ा वर्ग और दलित इन सभी की हालत इतनी दयनीय और सोचनीय हो गई थी कि इसकी मिसाल संसार में कहीं दूसरी जगह नहीं मिल सकती थी । दलित वर्ग के लिए जिंदा रहना भी मुश्किल हो गया था । दलित वर्ग के लोग न तो अच्छे काम कर पाते थे और न दलित वर्ग मंदिरों में पूजा कर सकते थे, और न तो तालाबों में पानी पी सकते थे और न तो कई सार्वजनिक सड़कों पर पैर रख सकते थे । जबकि कुत्ता बिल्ली और अन्य जानवर के साथ ऐसा सलूक नहीं किया जाता था ।
हजारों वर्ष तक महिलायें (सभी वर्ग की) आदिवासी, दलित और पिछड़ा वर्ग, इस धार्मिक अन्याय की चक्की में पिसते रहे। देश में कई राजे-महाराजे और शासक हुए लेकिन किसी ने इस धार्मिक अन्याय को दूर करने के लिए कुछ भी प्रयास नहीं किया। क्योंकि सभी राजे महाराजे वेदों,पुराणों और धार्मिक साहित्य का बहुत आदर करते थे । इसीलिए वेदों पुराणों के खिलाफ कुछ भी कदम उठाने की साहस नहीं जुटा पाते थे, और राजाओं को यह भी बताया जाता था, कि वेद ब्रह्मा के मुख से निकले है,इसीलिए  वेदों और पुराणों की लिखी बातों को न मानने का मतलब है। ईश्वर के दिए गए आदेश को न मानना । इसीलिए इस धार्मिक और सामाजिक अन्याय को दूर करने का साहस कोई राजा या शासक नहीं कर सका ।
छत्रपति शाहू जी महाराज
छत्रपति शाहू जी महाराज
लेकिन 20वीं सदी की शुरुआत में कोल्हापुर रियासत के राजा शाहूजी महाराज ने वेदों और पुराणों के खिलाफ जाने का साहस किया तथा कोल्हापुर रियायत के प्रशासन को बगैर भेदभाव के संपूर्ण प्रजा के कल्याण के लिए समर्पित किया ।
छत्रपति शाहूजी महाराज ने 26 जुलाई 1902 में एक आदेश दिया,जिसके तहत पिछड़े वर्ग तथा निर्बल वर्ग को रियासत के सरकारी दफ्तरों में नौकरियों में 50%  आरक्षण देने का प्रावधान किया था । इस तरह भारत के निर्वल वर्ग को आरक्षण मिलने की शुरुआत हुई ।
शाहू जी महाराज चाहते थे  कि बहु
जन वर्ग के लिए शिक्षा मिले इसीलिए प्रत्येक देहात में स्कूल भी खुलवाई । शाहूजी महाराज ने बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को अपनी अधूरी शिक्षा पूरी करने के लिए आर्थिक मदद देकर इंग्लैंड भेजा ताकि बाबा साहब ज्ञान अर्जित कर के देश में पिछड़े वर्ग तथा निर्बल वर्ग को सामाजिक तथा आर्थिक समानता दिला कर देश का भला कर सके ।
छत्रपति साहू जी महाराज द्वारा दिया गया आरक्षण कोल्हापुर रियायत तक ही सीमित था ।
लेकिन बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर पूरे देश में सामाजिक और आर्थिक अन्याय समाप्त कर समतामूलक समाज की स्थापना करना चाहते थे ।
Puna Pact
डॉ. अम्बेडकर तथा गांधी जी


देश में अंग्रेजों के राज को करीब 150 वर्ष  बीत चुके थे भारतीय लंबे समय से स्वराज की मांग कर रहे मैं थे जिसे पूरा करने के लिए अँग्रेज़ सरकार ने सन 1930-1931 में लंदन में गोलमेज सम्मेलन बुलाया । बाबा साहेब ने गोलमेज सम्मेलन में दलितों की तरफ से भाग लिया
गोलमेज सम्मलेन में बाबा साहब  ने अपने भाषण में कहा था:- “भारत में अंग्रेजी नौकरशाही सरकार के स्थान पर लोगों द्वारा ,लोगों के लिए, लोगों की सरकार कायम की जाये “
बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने अँग्रेज़ सरकार से भारतीय के लिए  स्वराज देने की मांग रखी तथा दलितों के लिए विधानमंडलों में अलग निर्वाचन क्षेत्र देने की मांग रखी ।
बाबा साहब का मानना था कि भारत में लोग योग्यता और शिक्षा से ज्यादा जाति देखते हैं इसलिए संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र में दलित वर्ग के उम्मीदवारों को सवर्ण और जातिवादी व्यक्ति वोट नहीं देंगे इसलिए दलित वर्ग के प्रतिनिधि विधानमंडलों में चुनकर नहीं जा पाएंगे जबकि दलित और पिछड़े वर्ग के लोग ब्राह्मण और सवर्णों को वोट देना पुण्य का काम समझेंगे इसलिए ब्राह्मण और सवर्ण जीत जाएंगे और सत्ता में आने पर स्वर्ण और दलितों पिछड़े वर्ग पर और भी ज्यादा अन्याय और अत्याचार करेंगे इसीलिए बाबा साहब ने चुनाव में दलितों के लिए ऐसे अलग चुनाव क्षेत्र की मांग रखी जिन क्षेत्रों में केवल दलित वर्ग के व्यक्ति ही चुनाव लड़ सके और केवल दलित वर्ग के व्यक्ति ही वोट डाल सकें।
बाबा साहेब अंग्रेज सरकार से ऐसा प्रावधान करने की मांग की जिससे किसी आदमी के सामने देश की सरकारी नौकरी में प्रवेश होने के संबंध में कोई बाधा न रहे । गोलमेज सम्मेलन में भाषण देते हुए बाबा साहब ने कहा था । महोदय, मेरा मत है की किसी भी एक  वर्ग को किसी देश की सारी सरकारी नौकरियों पर एकाधिकार कर लेने देना एक बड़े भारी सार्वजनिक खतरे को मोल लेने देना  है । मैं इसे सार्वजनिक खतरा कहता हूं, क्योंकि इससे जो जातियां फायदे में रहती हैं, उनके अंदर अहंकार का भाव पैदा हो जाता है। बाबा साहब ने यह भी कहा था । कि हम भारत के लिए एक नया विधान बनाने जा रहे हैं। हमें उस का आरंभ ऐसी पद्धति से करना चाहिए जिसमें महामहिम की प्रजा के हर आदमी को इस बात का अवसर हो कि वह सरकारी नौकरियों में अपनी अपनी योग्यता का परिचय दे सकें ।

सवर्णों का सरकारी नौकरियों में एकाधिकार है  जिसके चलते अन्य वर्गों की भारी उपेक्षा हो रही है। सवर्ण लोगों ने न्याय और समानता को दरकिनार कर अपने वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए अपने अधिकारों का दुरूपयोग किया है । सरकारी नौकरियों में सवर्णों को एकाधिकार को समाप्त करने के लिए इस प्रकार के नियम बनाया जाए जिससे की नौकरियों में भर्ती सभी संप्रदायों को उसका उचित भाग मिल सकें ।
प्रथम गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस और गांधी ने भाग नहीं लिया लेकिन दूसरे गोलमेज सम्मेलन में गांधी ने भाग लिया और अपनी गलत और अमानवीय सोच का परिचय देते हुए दलितों के लिए अलग चुनाव क्षेत्र और राजनीतिक अधिकार देने का डटकर विरोध किया । गांधी जी का कहना था कि दलित वर्ग हिंदू धर्म का ही एक हिस्सा है, इसलिए दलित वर्ग को हिंदू वर्ग से अलग नहीं किया जा सकता गांधी जी का कहना था कि मैं प्राणों की बाजी लगाकर इस तरह के राजनीतिक बंटवारे का मैं विरोध करूंगा।

गांधीजी के कड़े विरोध के बावजूद ब्रिट्रेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के तर्क पक्ष और मांग को सही मानते हुए 16 अगस्त सन 1932 को दलित वर्ग को राजनीतिक अधिकार देते हुए उन्हें विधानमंडलों में अलग निर्वाचन क्षेत्रों का प्रस्ताव मंजूर  किया । दलित वर्ग को राजनीतिक अधिकार मिलना गांधीजी को सहन नहीं हुआ । दलित वर्ग के लिए विधानमंडलों में अलग निर्वाचन क्षेत्र मिलने के विरोध में गांधी जी ने पुणे की यरवदा जेल में आमरण अनशन शुरु कर दिया । गांधी की मांग थी दलित वर्ग को जो राजनीतिक अधिकार स्वतंत्र निर्वाचन क्षेत्र मिले हैं । उन्हें समाप्त कर दिया जाए । यरवदा जेल में गांधीजी के अनशन के कारण पूरे देश में कांग्रेसियों ने अंबेडकर का विरोध करना शुरू कर दिया । दलितों के साथ मारपीट तथा हत्याएं आगजनी करना शुरु कर दिए । दलितों के घर आग के हवाले कर दिए गये । यह सब कांग्रेसी इसलिए कर रहे थे कि बाबा साहब अंबेडकर दलितों को मिले राजनीतिक अधिकारों को छोड़ देवें ।

कांग्रेसी बाबा साहब से गाँधी से बात करने का अनुरोध भी कर रहे थे । अंत में देश में शांति और दलितों की जान माल की रक्षा के लिए डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने पुणे की यरवदा जेल में जाकर गांधी से मुलाकात की । लंबी बातचीत के बाद डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने विधानमंडलों में मिले अलग निर्वाचन क्षेत्रों के प्रस्ताव को छोड़ दिया । और बदले में दलित वर्ग के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र के मुआवजे के रुप में गांधी की मंशा के अनुसार राजनीतिक आरक्षण स्वीकार कर लिया । समझौते के तहत  विधानमंडलों में अलग निर्वाचन क्षेत्रों की जगह सुरक्षित क्षेत्र प्रदान किए गये । यानि जो  क्षेत्र दलित वर्ग के लिए सुरक्षित रखे गए उनमें केवल दलित वर्ग के प्रत्याशी ही खड़े हो सकेंगे लेकिन सभी वर्ग के मतदाता वोट डाल सकेगें  ।

24 सितंबर सन 1932 को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और गांधी के बीच एक समझौता हुआ जिसे पूना समझौता या पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है । इस समझौते पर दलित वर्ग की तरफ से डॉक्टर अंबेडकर तथा सवर्ण हिंदुओं की तरफ से मदन मोहन मालवीय ने हस्ताक्षर किये । इसके बाद राजनीति में आरक्षण की शुरुआत हुई और गांधी ने अपना अनशन समाप्त कर दिया । बाबा साहब का मानना था कि गांधी और कांग्रेस ने पूना  पैक्ट रुपी फल से प्राप्त रस को चूस लिया और छिलका दलितों के मुंह पर दे मारा ।
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Rahul Bouddh

Jai Bheem My name is Rahul. I live in Sagar Madhya Pradesh. I am currently studying in Bahujan Awaj Sagar is a social blog. I publish articles related to Bahujan Samaj on this. My purpose is to work on the shoulders from the shoulders with the people who are working differently from the Bahujan Samaj to the rule of the people and to move forward the Bahujan movement.

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