सन 1910 की जनगणना के आधार पर हिन्दू तथा गैर हिन्दू तथा पूना पैक्ट
1910 जनगणना के आधार पर हिन्दू गैर हिन्दू |
सन 1910 में धर्म पर आधारित जनगणना में अंग्रेजों ने दलित, आदिवासी ,सिख ,जैन और बौद्ध समुदाय को हिंदू नहीं माना था बल्कि इन समुदायों को हिंदू धर्म से अलग समुदाय माना था
ब्राह्मण की श्रेष्ठता पर विश्वास करते हैं वे हिंदू है ।
- जो ब्राह्मणों (Brahman)या मान्य गुरुओं से गुरु मंत्र लेते हैं वह हिंदू है।
- जो वेदों का प्रमाणित ग्रन्थ Certified texts मानते हैं वे हिंदू हैं।
- ब्राह्मण Brahman जिनके यहां पुरोहिताई करते हैं वे हिंदू हैं।
- जो हिन्दू देवी-देवताओं (Gods and Goddesses) की पूजा (worship) करते हैं वे हिंदू है।
1910 में जनगणना आयुक्त ने दलितों की हिंदुओं से अलग जनगणना की क्योंकि जनगणना आयुक्त ने एक परिपत्र जारी किया था, जिसमें कारण स्पष्ट किया गया था:-
- जो ब्राह्मणों से गुरु मंत्र (गुरु दीक्षा Guru initiation) नहीं लेते उन्हें हिंदू नहीं माना।
- ब्राह्मण जिनके पारिवारिक Famiy पुरोहित नहीं है वे हिंदू नहीं है।
- जिनका कोई भी ब्राह्मण पुरोहित नहीं होता वे हिंदू नहीं है।
- जिन्हें हिंदू मंदिरों के अंदर जाने नहीं दिया जाता उन्हें जनगणना आयुक्त ने हिंदू नहीं माना।
- जो गाय का मांस खाते (Beaf) हैं और गाय की पूजा नहीं करते है वे हिंदू नहीं है।
वैसे तो बाबा साहब बचपन से ही दलित वर्ग की दुर्दशा पर चिंतित थे लेकिन जब वे पड़ लिख गए उन्हें भारतीय इतिहास और साहित्य का ज्ञान हो गया। तब उनके मन में इस दलित वर्ग का उत्थान करने की इच्छा हुई पढ़ाई पूरी करने के बाद बाबा साहब दलितों की समस्यायें (Problems) सरकार के सामने रखने और दलितों की हर स्तर पर समानता दिलाने के लिए 20 जुलाई 1924 में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की। सन 1927 में साफ पानी पीने के अधिकार के लिए महाड सत्याग्रह किया। 25 दिसंबर 1927 को हिंदुओं के काले कानून मनुस्मृति को जलाया। सन1930 में बाबा साहब ने नाशिक कालाराम मंदिर में पूजा करने के लिए सत्याग्रह किया ।
बाबा साहब का कहना था कि यदि सवर्ण हिंदू दलितों को हिंदू मानते हैं तो हमें मंदिरों में पूजा करने का अधिकार भी मिलना चाहिए परिणाम स्वरुप 21 अप्रैल 1932 को कालाराम मंदिर के दरवाजे खुलवाने का सरकारी आदेश Government order हुआ फिर भी पंडित पुजारी दलितों के मंदिरों में पूजा करने का विरोध करते रहे।
पूना समझौता (Puna Pact)
पूना समझौता 1932 |
“ दलित वर्ग यह 4 करोड़ 30 लाख लोगों का अथवा ब्रिटिश की भारत की जनसंख्या का पांचवा भाग है दलित वर्ग अपने में एक अलग वर्ग है वह मुसलमानों से स्पष्ट रुप से भिन्न और अलग है । यद्यपि दलित वर्ग Depressed classes के लोगों की गिनती हिंदुओं में की जाती हैं ,तो भी दलित वर्ग किसी भी तरह से हिंदू जाति का एक हिस्सा नहीं है । इतना ही नहीं दलित वर्ग का अलग अस्तित्व है”
बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने गोलमेज सम्मेलन में भारतीयों के लिए स्वराज्य की मांग रखी तथा दलित वर्ग का हिंदू वर्ग से अलग अस्तित्व (separate entity) की मान्यता देते हुए अलग चुनाव क्षेत्रों की मांग रखी। गोलमेज परिषद ने दलित (अछूतो) के लिए विधान परिषद में अलग चुनाव क्षेत्रों की सिफारिश की थी।
दलितों के अलग चुनाव क्षेत्र (Separate constituencies) के विरोध में गांधी जी :-
प्रथम गोलमेज सम्मेलन में गांधी और कांग्रेस ने भाग नहीं लिया लेकिन दूसरे सम्मेलन में गांधी ने भाग लिया और अपनी अमानवीय सोच का परिचय देते हुये दलितों के लिए अलग चुनाव क्षेत्र और राजनीतिक अधिकार देने का डटकर विरोध (Against) किया ।
गांधी जी का कहना था कि “ दलित वर्ग (अछूत वर्ग) हिंदू धर्म का एक ही हिस्सा है इसलिए अछूत वर्ग को हिंदू वर्ग से अलग नहीं किया जा सकता इसलिए मैं दलित वर्ग और हिंदुओं में राजनीतिक रूप से बंटवारे के मैं खिलाफ हूँ” गांधी जी ने यह भी कहा कि” मैं प्राणों की बाजी लगाकर इस तरह के राजनीतिक बंटवारे का मैं विरोध करूंगा”
गांधीजी के कड़े विरोध के बावजूद ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री रैम्जै मैकडोनाल्ड ने डॉ भीमराव अंबेडकर के तर्क पक्ष और मांग को सही मानते हुये, 16 अगस्त 1932 को दलित वर्ग को हिंदुओं से अलग वर्ग मानते हुए, दलित वर्गों को राजनीतिक अधिकार देते हुये, उन्हें अलग निर्वाचन क्षेत्रों (Separate constituencies) का प्रावधान किया ।
दलित वर्ग को हिंदू वर्ग से अलग वर्ग की मान्यता मिलने और दलित वर्गों को राजनीतिक अधिकार मिलना गांधी जी को सहन नहीं हुआ और गांधी ने दलित वर्ग के लिए हिंदू वर्ग से अलग मान्यता मिलने और दलित वर्गों के लिए विधान मंडलों में अलग निर्वाचन क्षेत्र मिलने के विरोध में पूना के यरवदा जेल में आमरण अनशन शुरु कर दिया ।
कांग्रेसियों ने पूना पैक्ट के विरोध में दलितों के साथ किए अत्याचार :-
गांधी की मांग थी कि दलित वर्गों को जो राजनीतिक अधिकार स्वतंत्र निर्वाचन क्षेत्र मिले हैं उन्हें समाप्त कर दिया जाये। यरवदा जेल में गांधी के अनशन (Hunger-strike) के कारण पूरे देश में कांग्रेसियों ने अंबेडकर का विरोध करना शुरू कर दिया, दलितों के साथ मारपीट तथा हत्यायें, आगजनी करना शुरू कर दिया, दलितों के घरों को आग के हवाले कर दिए गए। यह सब कांग्रेसी इसलिए कर रहे थे कि ताकि बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर दलितों को मिले राजनीतिक अधिकार political rights को छोड़ देवे।
बाबा साहब अलग निर्वाचन क्षेत्र(Separate constituency) छोड़ने को हुये मजबूर :-
कांग्रेसी बाबा साहब से गांधी से बात करने का अनुरोध भी कर रहे थे अंत में देश में शांति और दलितों की जान माल की रक्षा के लिए डॉ भीमराव अंबेडकर जी ने पुणे की यरवदा जेल में जाकर गांधी से मुलाकात की लंबी बातचीत के बाद डॉ.अंबेडकर ने विधानमंडलों में मिले अलग निर्वाचन क्षेत्र के प्रस्ताव को छोड़ दिया और बदले में दलित वर्ग के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र के मुआवजे के रूप में राजनीतिक आरक्षण स्वीकार कर लिया। समझौते के तहत दलित वर्ग को विधानमंडल में सुरक्षित क्षेत्र प्रदान किए गये यानि जो क्षेत्र दलितों के लिए सुरक्षित क्षेत्र (Safe zone) से गए उनमें केवल दलित वर्ग के प्रत्याशी खड़े हो सकेंगे लेकिन सभी वर्ग के मतदाता वोट डालेंगे ।
24 सितंबर 1932 को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और गांधी के बीच एक समझौता हुआ जिसे पूना पैक्ट यह पूना समझौता के नाम से जाना जाता है इस समझौते पर दलित वर्ग(अछूत वर्ग) की तरफ से डॉ अंबेडकर ने तथा सवर्णों की तरफ से मदन मोहन मालवीय ने हस्ताक्षर Signature किए । इसके बाद गांधी ने अपना अनशन समाप्त कर दिया ।
पूना पैक्ट समझौते के बाद बाबा के विचार :-
पूना समझौते को कांग्रेस ने सवर्ण हिंदुओं और दलितों के बीच व्याप्त दूरी को मिटाने का समझौता बताया था इस समझौते के समय गांधी ने डॉक्टर अंबेडकर को वचन दिया था कि मैं देश से छुआछूत को दूर करने का प्रयास करूंगा और दलित वर्ग और सवर्ण हिंदुओं के बीच व्याप्त कटुता और दूरी को दूर करने का प्रयास करूंगा ।
पूना समझौते होने के बाद 25 सितंबर सन 1932 को मुंबई में हुई अंतिम हिंदू कॉन्फ्रेंस में डॉक्टर अंबेडकर ने चिंता व्यक्त की थी कि “ हमें चिंता है तो इस बात कि है कि क्या हिंदू जाति इस समझौते का पालन करेगी, हम अनुभव करते हैं कि दुर्भाग्य से हिंदू जाति की एक इकाई नहीं है” बाबा साहब ने यह भी कहा था कि “ चुनाव संबंधी कोई भी व्यवस्था बड़ी सामाजिक समस्या social problem का हल नहीं हो सकती, इसके लिए राजनीतिक समझौते मात्र पर्याप्त नहीं है मैं आशा करता हूं कि आपके लिए संभव होगा कि आप इसे राजनीतिक से आगे बढ़कर ऐसा कर सके जिसमें दलित वर्ग के लिए न केवल हिंदू समाज का एक हिस्सा बने रहना संभव हो जाए बल्कि उसे समाज में सम्मान और समानता का दर्जा (Level of equality)प्राप्त हो”
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