कांशीराम जी का अन्तिम उद्देश्य |
RPI के नेताओं का मानना था कि यह जो फुले शाहू आंबेडकर की विचारधारा ठीक है ,सही है मैं सहमत भी हूँ ,लेकिन इस विचारधारा से हम MLA नहीं बन सकते MP नहीं बन सकते तो कांशीराम जी सवाल पूछा करते थे कि क्या MLA MP बनना जरूरी है , तो उनके पास कोई संतोषजनक उत्तर नहीं होता था .
इस प्रकार जिन लोगों की देख-रेख में डॉ.बाबा साहब अंबेडकर ने आंदोलन को चलाया आगे बढ़ाया संघर्ष किया वही लोग इस मूवमेंट को आंदोलन को छोड़ने की तैयारी कर चुके थे और बाबा करते-करते बापू के चरणों में आ गए.
ऐसा कांशीराम जी ने महाराष्ट्र के नेताओं और RPI का हाल देखा और उन्होंने निष्कर्ष निकाला।
" जिस समाज की गैर राजनीतिक जड़ें मजबूत नहीं होती हैं ,उस समाज की राजनीति कभी कामयाब नहीं होती है "
साहब कांशीराम जी गैर राजनीतिक जड़ें मजबूत करने के लिए 15 लाख कर्मचारियों का BAMCEF नाम का संगठन बनाया और फुले शाहू आंबेडकर की विचारधारा बहुजन समाज के कर्मचारियों को फुले शाहू अम्बेडकर की विचारधारा बताकर तैयार किया, मान्यवर कांशीराम जी का कहना था ,कि बाबा साहब के संघर्षों की वजह से आरक्षण मिला तथा उसी आरक्षण की वजह नौकरी पेशा करने का मौका मिला, तो बहुजन समाज के कर्मचारियों को समाज को कुछ वापिस भी करना पड़ेगा, इस तरह 6 दिसंबर 1978 को BAMCEF (The All India Backward And Minority Communities Employees Federation) की स्थापना की .
BAMCEF के माध्यम से संगठित होने के बाद संघर्ष करने के लिए सन 1981 मे DS4 ( दलित शोषित समाज संघर्ष समिति) की स्थापना की .
उन्हीनें नारा दिया… … .
"ठाकुर बामन बनिया छोड़,बाकि सब है DS4"
DS4 के माध्यम से कांशीराम जी ने एक बड़ा आंदोलन Movement खड़ा करने की DS4 के माध्यम से खड़ा करने की कोशिश की .
इसके बाद 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की, तथा सामाजिक परिवर्तन आर्थिक मुक्ति राजनीति के माध्यम से संघर्ष आरंभ किया, और BSP बनने के 10 साल बाद 3 जून 1995 को बहुजन समाज पार्टी की पहली सरकार उत्तर प्रदेश में बनी जिसकी मुख्यमंत्री माननीय सुश्री बहन कुमारी मायावती जी बनी , और 1996 में बहुजन समाज पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा मिला, उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की 4 बार सरकार बनी , 4 ही बार बहन जी को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला ।
यह सब कांशीराम जी का 0 से राष्ट्रीय पार्टी बनाने का सफर था .
यह सफर आसान नहीं था इसके पीछे कांशीराम जी का बहुत बड़ा त्याग बलिदान रहा ,कांशीराम जी जब इस फुले शाहू अंबेडकर के आंदोलन को आगे की शुरुआत कर रहे थे तो ना तो उनके पास संगठन था ना पैसा था कांशीराम जी ने इस कारवां को आगे बढ़ाते समय उन्होंने 3-4 दिन की सूखी रोटी खाई, मुर्दों की उत्तरण पहनी तथा 5000 किलोमीटर साइकिल चलाकर 2000 किलोमीटर पैदल चलकर इस कारवां को आगे बढ़ाया .
कांशीराम जी अक्सर बोला करते थे… …
"सामाजिक क्रांति की चेतना दिल की गहराईयों से आती है, यह एक ऐसा तथ्य है,जो नौजवानों को इस बात के लिए प्रेरित करता है,कि वे सामाजिक आंदोलन में अपना योगदान दें "
अगर कांशीराम साहब नहीं होते तो शायद डॉ अंबेडकर नहीं जान पाते अगर इस भारत देश में सबसे बड़ा अंबेडकरवादी था तो वे कांशीराम थे, कांशीराम जी से बड़ा अंबेडकरवादी कभी पैदा नहीं हुआ .
कांशीराम साहब ने कहा था… ..
हमारा अंतिम लक्ष्य इस देश के बहुजन समाज को शासक बनना है।
यही मान्यवर कांशीराम साहब का अन्तिम उद्देश्य था .
Jay bheem nice likha h
ReplyDeleteThanks you
DeleteJay bheem bhai
DeleteSabhi sathiyo ko jay bheem
Deleteएससी समाज को उपर उठाने के 6 मूल मंत्र:-
Delete1. समाज के लिए लड़ाई लड़ो.
2. लड़ नही सकते तो लिखो.
3. लिख नही सकते तो बोलो.
4. बोल नहीं सकते तो साथ दो.
5. साथ भी नहीं दे सकते तो जो लिख और
बोल रहे हैं, जो लड़ रहे हैं, उनका अधिक से अधिक सहयोग करें,
संघर्ष के लिए ताकत दें.
6. ये भी न कर सकें तो कम से कम मनोबल न गिरायें,
क्योकि कहीं न कहीं कोई आपके हिस्से
की भी लड़ाई लड़ रहा है.
बॉबी धौलपुरी
Lajavab
ReplyDeleteThank you
DeleteSooper Rahul bhaiya
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