माता सावित्रीबाई फुले एक महान नायिका |
सभी साथियों को क्रांतिकारी जय भीम
प्रारंभिक जीवन :-
आज माता सावित्रीबाई फुले जयंती है, वे एक नारी हैं, जिसने महिलाओं को शिक्षा दिलाने के लिए,हक दिलाने के लिए अधिकार दिलाने के लिए,अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया ।
सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में सामाजिक क्रांति के अग्रदूत महात्मा फुले के साथ हुआ था ।
उनके पति महात्मा फुले ने उन्हें शिक्षा दी पढ़ाया लिखाया ।
उस समय शूद्रों ,अछूतों और महिलाओं को हिंदू धर्म के अनुसार खासकर मनुस्मृति के अनुसार पढ़ने लिखने का अधिकार नहीं था ।
महात्मा फुले जी ने माता सावित्रीबाई फुले को शिक्षा देकर 5000 साल के इतिहास में सबसे पहले शिक्षा दी।
स्कूल खोलने के लिए संघर्ष :-
महात्मा फुले और सावित्रीबाई फुले जी ने साथ मिलकर 1 जनवरी 1848 को सबसे पहली पाठशाला अछूत लड़कियों और बच्चों के लिए खोली ।
उस समय 5000 साल में सबसे पहले अछूत बच्चों और लड़कियों के लिए शूद्रों के लिए पाठशाला खोलकर महात्मा फुले ने और सावित्रीबाई फुले ने एक नया इतिहास रच दिया ।
उनके पति ज्योतिबा फुले ने उन्हें पढ़ाने के लिए तैयार किया उन्होंने अछूत बच्चों शूद्रों और लड़कियों को पढ़ाने के लिए कार्य किया और एक क्रांतिकारी कार्य किया ,
माता सावित्री बाई फूले आधुनिक भारत की सबसे पहली शिक्षिका और उस स्कूल की प्रिंसिपल बनी, लेकिन उस समय ब्राह्मण पुजारियों ने महात्मा फुले जी के पिता गोविंदराव को भड़का दिया और कहा!तुम्हारा बेटा और बहू ,अछूत लड़कियों बच्चों और शूद्रों (पिछड़ा वर्ग ) शिक्षा देकर घोर पाप कर रहा है ।
उन्होंने तर्क दिया कि, पढ़ने और पढ़ाने का अधिकार केवल ब्राह्मणों को है , अगर उन्होंने पढ़ाने का काम बंद नहीं किया तो,यह धरती पलट जाएगी ।
उनके पिता गोविंदराव ब्राह्मणों की बातों में आकर महात्मा फुले और उनकी पत्नी माता सावित्रीबाई फुले से कहा, अगर घर में रहना है चाहते हो,तो स्कूल का काम बंद करना पड़ेगा, लेकिन महात्मा फुले है और उनकी पत्नी माता सावित्री बाई फूले ने उनके पिता गोविंदराव से कहा हम स्कूल का काम बंद नहीं कर सकते तो उनके पिता गोविंदराव ने घर से बाहर निकाल दिया ।
मुस्लिम महिला फातिमा शेख ने की मदद :-
घर से निकलने के बाद उन्हें रहने के लिए जगह नहीं थी तब उस समय महात्मा फुले जी के मित्र उस्तान शेख और फातिमा शेख ने अपने घर में रहने के लिए जगह दी ।
फातिमा शेख मियां उस्तान शेख की बहन थी, फातिमा शेख ने अपने घर की कोठरी में स्कूल चलाने के लिए जगह दी और सावित्रीबाई फुले जी के साथ पढ़ाने का काम किया । फातिमा शेख आधुनिक भारत की सबसे पहली मुस्लिम शिक्षिका बनी ।
माता सावित्री बाई फूले ने पढ़ाने के लिए घोर अपमान सहा :- माता सावित्रीबाई फुले बच्चों को पढ़ाने के लिए कार्य करना आसान नहीं था, उनको ब्राह्मणों लोगों का घोर और कड़ा विरोध सहना पड़ा । आज से करीब 107 साल पहले जब बे बच्चों को पढ़ाने जाती थी तो अपने साथ 2 साड़ियां लेकर जाती थी क्योंकि जब भी रास्ते से निकलती तो लोग उनके ऊपर गोबर, पत्थर, कीचड़ और यहां तक की उनके ऊपर विष्ठा तक फेंक देते और स्कूल जा कर साड़ी बदल लेती थी । इतना सब कुछ होने के बाद भी उन्होंने कभी घर नहीं खोया सब सहती गई और अपनी शिक्षा के कार्य से कभी विचलित नहीं हुई ।
आज यही कारण है, कि भारत की नारी आज शिक्षित है ,वे किसी भी फील्ड में हो महिलाएं आगे हैं आज भारत की महिलाएं चांद पर जा सकती हैं नौकरी कर सकती हैं फौज में जा सकती हैं राष्ट्रपति प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री बनने का सिर्फ एक ही कारण है माता सावित्रीबाई फुले ने संघर्ष किया ।
विधवा विवाह के लिए संघर्ष एवं सामाजिक कार्य :-
माता सावित्रीबाई फुले शिक्षा सुधार के साथ-साथ समाज सुधार के लिए भी कार्य किया, उन्होंने विधवाओं की दशा और दशा सुधारने के लिए सती प्रथा खत्म करने के लिए विधवा पुनर्विवाह के लिए बहुत ज्यादा प्रयास किया और विशेष रुप से यह कार्य तब किए जब अंग्रेजों का शासन काल था, महिलाओं के विकास के लिए उन्होंने कार्य किये , 19वीं सदी के उस समय कम उम्र में विवाह करना ब्राह्मण धर्म की प्रथा थी । इसलिए ज्यादातर महिलाएं कम उम्र में विधवा हो जाती थी ब्राह्मण धर्म के अनुसार विधवा विवाह पाप माना जाता था
सन 1881 में कोल्हापुर में ऐसा होता था कि विधवा होने के बाद उनके बाल कटवाने पड़ते और बहुत ही साधारण जीवन में रहना पड़ता था और कहीं कहीं पर तो महिलाओं पर अत्याचार घर के सदस्यों द्वारा शारीरिक शोषण किया जाता था ।
सावित्रीबाई फुले जी और उनके पति महात्मा फुले जी के साथ मिलकर एक काशीबाई नामक एक गर्भवती विधवा महिला को आत्महत्या करने से रोका और अपने घर पर ही उनकी देखभाल की और उस समय पर डिलीवरी कराई थी और बाद में उनके पुत्र को गोद लेकर उसे खूब पढ़ाया-लिखाया बाद में एक प्रसिद्ध डॉक्टर बना जिसका नाम यशवंतराव था ।
निधन :- सावित्रीबाई फुले और उनके दत्तक पुत्र यशवंतराव ने अपने स्तर पर 1897 में मरीजों के इलाज के लिए एक अस्पताल खोला था सन 1897 में पुणे में प्लेग नामक भयंकर रोग फैल गया , अपने अस्पताल में माता सावित्री फुले ने मरीजों का ध्यान रखती थी और सुविधाएं देते थे बेखुद बच्चों को पीठ पर लाकर अस्पताल तक पहुंचाती थी इसी के कारण में प्लेग नामक रोग के चपेट में आ गई और 10 जनवरी 1897 निधन हो गया ।
आज हमारे बहुजन समाज ने माता सावित्रीबाई फुले को भुला दिया है , अगर माता सावित्रीबाई फुले न होती और न ही उन्होंने संघर्ष नहीं किया होता तो भारत की कभी भी महिलाएं शायद ही पढ़ने लिखने का अधिकार मिलता और महिलाएं गुलामी की जंजीरों में जकड़ी रहती हम उनके कर्तव्य है कि महात्मा फुले और सावित्रीबाई फूलों की वजह से पढ़ने लिखने का मौका मिला और संविधान निर्माता डॉ बाबासाहेब आंबेडकर को पढ़ने लिखने का मौका मिला और डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर ने संविधान में महिलाओं को समान अधिकार दिया शिक्षा का अधिकार दिया ।
जय भीम जय भारत जय सावित्री
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