हमारे भारत देश में बहुजन समाज को गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलाने के लिए बहुत से संतो गुरुओं महापुरुषों ने बहुजन समाज को हक अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया और अपना हर परिवार ना देख कर बहुजन समाज के लिए कुर्बानी दी
जिनमें तथागत गौतम बुद्ध Gautam Buddha ,संत कबीर Sant Kabir, संत रविदास ,महात्मा ज्योतिराव फूले Mahatma Phule , माता सावित्रीबाई फुले Mata Savitribai Phule, फातिमा शेख Fatima Sekh , छत्रपति शाहूजी महाराज Chhatrapati Sahu ji Maharaj, बिरसा मुंडा Birsa Munda,डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर (Dr Babasaheb Ambedkar ) पेरियार रामासामी नायकर Periyar Ramasami Naukar , मान्यवर कांशीराम साहेब Kamshiram Saheb जैसे अनेकों महापरुषों शामिल है.
जिनमें से एक क्रांतिकारी संत रविदास जी भी हैं उनका जन्म 1398 को कासी बनारस में हुआ था उनके पिता का नाम रघु और माता का नाम कर्मा देवी था, इनके जन्म में वैचारिक मतभेद है
जिनमें तथागत गौतम बुद्ध Gautam Buddha ,संत कबीर Sant Kabir, संत रविदास ,महात्मा ज्योतिराव फूले Mahatma Phule , माता सावित्रीबाई फुले Mata Savitribai Phule, फातिमा शेख Fatima Sekh , छत्रपति शाहूजी महाराज Chhatrapati Sahu ji Maharaj, बिरसा मुंडा Birsa Munda,डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर (Dr Babasaheb Ambedkar ) पेरियार रामासामी नायकर Periyar Ramasami Naukar , मान्यवर कांशीराम साहेब Kamshiram Saheb जैसे अनेकों महापरुषों शामिल है.
बहुजन समाज के महान क्रन्तिकारी संत रविदास जी |
वे चमार जाति (Chamar Cast) के बताये जाते है ।
इनके पिता रघु जूते बनाने का काम करते थे , संत रविदास जी (Sant Ravidas ji) ने ब्राह्मणवाद जातिवाद के घोर विरोधी थे, उन्होंने ब्राह्मणवाद पर चोट करने के लिए दोहे छंद के माध्यम से ब्राह्मणवाद और जातिवाद पर करारी चोट की उस समय पर निम्न जाति के लोगों को पढ़ने पढ़ाने का अधिकार नहीं था और छुआछूत जातिवाद के शिकार लोग पीड़ित है ,उस समय पर अछूतों को न मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार था और न ही सार्वजनिक कुआं नदी तालाबों से पानी लेने का अधिकार नहीं था ।
शिक्षा लेने का और देने का अधिकार केवल ब्राह्मण वर्ग को ही था, और शासन करने का अधिकार क्षत्रिय को था और धन संपत्ति रखने का अधिकार केवल वैश्यों को था , अछूत और शूद्रों को केवल सेवा करने को कहा गया था ।
उस समय पर संत रविदास जी (sant Ravidas ji) ने इस सामाजिक व्यवस्था का कड़ा विरोध किया बल्कि जाति व्यवस्था समाजवाद ब्राह्मणवाद पर कुठाराघात किया ।
संत रविदास जी ने अपनी रचनाओं में ब्राह्मणवाद का विरोध करना और तर्क करना उनकी रचनाओं में मिलता है
वे लिखते है
जाति - जाति में जाति है,जो केतन के पात ।
जाति - जाति में जाति है,जो केतन के पात ।
रैदास मानुष न मानुष जुड़ सके जब तक जाति न जात ।।
अर्थात :- जैसे पेड़ के तने के ऊपर पत्ते पत्ते ही होते हैं और पत्ते कभी खत्म नहीं होते हैं उसी प्रकार जाति- जाति में बटा हुआ है ,जब तक जाति खत्म नहीं होती है तब तक इंसान इंसान से नहीं जुड़ सकता है ।
इस प्रकार संत रविदास जी जाति के बंधन को तोड़ने की बोल रहे हैं और उनके दोहे में स्पष्ट मिलता है ।
आगे लिखते है
ब्राह्मण मत पूछिए, जो होवे गुणहीन।
पूजिए चरण चंडाल के जो हो गए गुण प्रवीन ।।
अर्थात :- संत रविदास लिखते हैं ,जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता है कर्म से होता है वे कहते हैं ब्राह्मण के चरण नहीं पूजना और ना ही आदर करना चाहिए जिनके कर्म या गुण खराब है
चंडाल के लोगों को आदर कीजिए जिनके गुण अच्छे हो मतलव् इसका सीधा अर्थ होता है कि जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता है कर्म से होता है । इस प्रकार उन्होंने जातिवाद पर बहुत बड़ा प्रहार किया जिससे ब्राह्मण उस समय पर बौखला उठे ।
उस समय पर गरीबी लाचारी समाज में बहुत थी संत रविदास जी इस पर लिखते है ।
ऐसा चाहूं राज में मिले सबन को अन्न ।
छोट बड़ो सम बसे रैदास रहे प्रसन्न ।।
अर्थात :- संत रविदास कहते हैं समाज में ऐसी शासन व्यवस्था होनी चाहिए जिसमें कोई ना तो भूखा मरे और ना ही भूखा सोये ।
ऐसी शासन व्यवस्था संत रविदास जी चाहते थे ।
एक समय की बात है जब रविदास जी जूते बना रहे थे तब कुछ लोग बनारस में गंगा स्नान करने के लिए जा रहे थे तब ब्राह्मणवादियों ने उन लोगों को घाट पर जाने से रोक दिया और मना कर दिया तब रविदास जी ने कहा दोहो के माध्यम से लिखते है
मन चंगा तो कठौती में गंगा
अर्थात :- रविदास ने कहा कि जब इंसान का मन साफ है तो कहीं जाने की जरूरत नहीं है
इस तरह संत रविदास जी ने ब्राह्मणवाद के ऊपर जातिवाद के ऊपर चोट करी और ब्राह्मणवाद की जड़ों को हिलाकर रख दिया ।
संत रविदास जी की मृत्यु1540 को हो गई थी संत रविदास जी ऐसे संत हैं जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता है ।
जय भीम जय रविदास जय भारत
Jay bheem nice
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