वैदिक धर्म और तथागत गौतम बुद्ध
वैदिक धर्म और तथागत गौतम बुद्ध |
महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। उनके पिता शुद्धोधन उस समय कपिलवस्तु के राजा थे । उनकी माता का नाम महामाया था । राज्य परिवार में जन्म लेने के बाद भी भगवान बुद्ध का मन राजपाट और सुख सुविधाओं (Comfort facilities)में नहीं लगा, और उन्होंने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग कर दिया । तथा 6 वर्ष भटकने के बाद उन्हें बोधगया में पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान (Knowledge) प्राप्ति हुई । सारनाथ में भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया, जिसे धम्म चक्र प्रवर्तक (Whirlwind change) कहा जाता है, भगवान बुद्ध वेदों की प्रमाणिकता में विश्वास नहीं करते थे, उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक दृष्टिकोण था ।
1.जहां ब्राह्मण धर्म (हिन्दू धर्म) में वेदों को ईश्वर की रचना बताया जाता है, वही भगवान बुद्ध ईश्वर के अस्तित्व Existence में विश्वास नहीं करते थे, वासेट्ठ और भारद्वाज ब्राह्मणों के प्रश्नों के उत्तर में भगवान बुद्ध Lord Buddha ने कहा था कि, जब किसी ने ब्रह्मा को देखा नहीं ? किसी ब्रह्मा Brahma का साक्षात्कार नहीं हुआ तब तुम कैसे मानते हो कि ब्रह्मा का अस्तित्व है ।
2. जहां ब्राह्मण धर्म (हिन्दू धर्म) में कहा गया है, कि वेदों vedas के किसी भी शब्द पर प्रश्नचिन्ह (Question mark) नहीं लगाया जा सकता । वही कलाम क्षत्रियों को संबोधित करते हुए तथागत गौतम बुद्ध (Lord Buddhaने कहा था कि कोई ऐसी चीज हो ही नहीं सकती जो गलत होने की संभावना से बिल्कुल न्यारी हो , वेद भी नहीं इसलिए भगवान बुद्ध ने कहा कि हर चीज का परीक्षण और संशोधन (Testing and modification) होते रहना चाहिए । तथागत ने कथन जारी रखा “ हे कलामों किसी बात को केवल इसलिए मत मानो कि वह तुम्हारे सुनने में आई है, किसी बात को केवल इसलिए मत मानो कि वह परंपरा से प्राप्त हुई है, किसी बात को केवल इसलिए (Hence) मत मानो कि बहुत से लोग उसके समर्थक हैं, किसी बात को केवल इसलिए मत मानो कि वह बात धर्म ग्रंथों में लिखी हैं, किसी बात को केवल इसलिए मत मानो कि वह किसी आदरणीय आचार्य Teacher कि कही हुई है “ किसी बात को मानने से पहले उसकी बुद्धि और विवेक से अच्छी तरह से जांच-परख कर लेनी चाहिए और जब लगे कि कोई विचार idea सबके हित का है,तभी उसे मानना चाहिए ।
3. हिंदू धर्म( ब्राह्मण धर्म )में कहा गया है कि संसार की रचना God ने की है ,वही भगवान बुद्ध ने वासेट्ठ ब्राह्मण और भारद्वाज ब्राह्मणों से चर्चा करते हुए कहा था कि, यदि ईश्वर ने सृष्टि (The creation) की रचना की है तो उसे किस पदार्थ से सृष्टि की रचना की है । यदि सृष्टि की रचना करने से पहले कोई पदार्थ चला आ रहा था, जिससे ईश्वर ने सृष्टि की रचना की है तो, ईश्वर सृष्टि का पहला रचनाकार नही कहला सकता , ईश्वर अज्ञात है अदृश्य है कोई यह सिद्ध नहीं कर सकता कि, इस संसार world को ईश्वर ने बनाया है संसार का विकास हुआ है निर्माण नहीं हुआ ।
4. हिंदू धर्म Brahmanism के अनुसार ब्राह्मण सबसे श्रेष्ठ है, ब्राह्मण वर्ग सबसे ऊंचा है क्योंकि ब्राह्मण वर्ग ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हुआ है, वही भगवान बुद्ध ने अश्वलायन ब्राह्मण के प्रश्न के उत्तर में कहा था, कि जब ब्राह्मणों की स्त्रियां दूसरे वर्गों की स्त्रियों की तरह ऋतु-मती होती है, गर्भधारण करती हैं, संतान का प्रसव करते हैं,तो कैसे कहा जा सकता है, कि Brahman ही श्रेष्ठ है ।
5. वेदों में वर्णों का समाज व्यवस्था को आदर्श समाज व्यवस्था (Ideal society system) कहा गया है, ब्राह्मण का काम पढ़ना-पढ़ाना और धार्मिक संस्कार करना, क्षत्रियों का काम राज्य करना और रक्षा करना, वैश्यों का काम व्यापार करना और शूद्रों का काम ऊपर के तीन वर्णों की सेवा करना , भगवान बुद्ध ने एसुकारी (Auscari) ब्राह्मण के प्रश्न का उत्तर में कहा था कि, यदि चातुर्वर्ण एक आदर्श समाज व्यवस्था है तो यवन और कमवोज पड़ोसी देशों (Neighboring countries)में यह वर्ण व्यवस्था लागू क्यों नहीं है । भगवान बुद्ध ने आगे कहा, जहां तक मेरी बात है आदमी को वही पेशा (Occupation)करना चाहिए, जिस व्यवसाय में उसकी स्थिति अच्छी हो, और उस व्यवसाय को छोड़ देना चाहिए,जिससे उसकी स्थिति खराब हो ।
6. ब्राह्मण धर्म के अनुसार शुद्रो तथा सभी वर्गों की महिलाओं को पढ़ने लिखने और उपनयन संस्कार का अधिकार Rights। नहीं है क्योंकि स्त्रियां अशुद्ध होती हैं, लेकिन भगवान बुद्ध ऐसा नहीं मानते थे , उन्होंने महा प्रजापति गौतमी, यशोधरा ,प्रकृति नामक चंडालिका आदि स्त्रियों को अपने धर्म में दीक्षित किया तथा पाली, नाई, भंगी सुनीत, अछूतों ,ब्राह्मणों तथा कई राजाओं को बिना भेदभाव (No discrimination)को अपने धम्म में दीक्षित किया ।
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7. हिंदू धर्म के अनुसार आत्मा की मुक्ति (Freedom of soul)या मोक्ष की प्राप्ति यज्ञ करने यज्ञ में पशुओं की बलि देने तथा दूसरी धार्मिक क्रियाएं करने तथा ब्राह्मणों को दान देने से होती है , लेकिन भगवान बुद्ध यज्ञों में पशुओं की बलि देने के बिल्कुल खिलाफ थे ,उज्जय ब्राह्मण के प्रश्न के उत्तर में तथागत गौतम बुद्ध ने कहा था कि, हे! ब्राह्मण जिन यज्ञों Yagna में गाय की हत्या होती हो बकरियां और भेड़ों की बलि दी जाती हो, नाना तरह के प्राणियों की हत्या की जाती हो, मैं ऐसे यज्ञों की प्रशंसा नहीं करता ।
8. हिंदू धर्म (ब्राह्मण धर्म) के अनुसार व्यक्ति का जन्म उसके पिछले जन्म के अच्छे बुरे कर्मों के अनुसार उच्च या नीच कुल में होता है, वही Mahatma Buddha किसी भी कुल को ऊंचा या नीचा नहीं मानते थे, जब भगवान बुद्ध के पास एक राज परिवार के लोग और साथ में उपाली नाई दीक्षा लेने आए तो तथागत बुद्ध ने पहले नाई उपाली को भिक्षु संघ में दीक्षित किया, फिर उसके बाद राजकुमारों को भिक्षु संघ में दीक्षा दी ताकि शाक्य कुल पुत्र उपाली नाई को अपने से बड़ा मानकर उस का अभिवादन कर सकें, क्योंकि भिक्खु संघ में जो पहले दीक्षित होता था, उसे बड़ा माना जाता था । और न ही भगवान बुद्ध आत्मा Spirit के पुनर्जन्म में विश्वास करते थे, उन्होंने जैन भिक्षुओं से बातचीत करते हुए जोर देकर कहा था कि, वर्तमान जीवन का सुख-दुख परिस्थितियों का परिणाम है ।
तथागत बुद्ध के धर्म से प्रभावित होकर देश के अधिकतर Mostly राजाओं ने वैदिक धर्म (हिंदू धर्म) छोड़ दिया और वे बौद्ध धर्म के उपासक बन गये , इनमे मगध के राजा अजातशत्रु, जिसका राज्य दक्षिण बिहार में स्थित था, वैशाली राज्य के लिच्छवि, कपिलवस्तु के शाक्य जिस कुल में Lord Buddha का जन्म हुआ, अहक्टय के बल्लि रामग्राम कोलि, पावा के मल्य, तथा कुशीनगर के मल्य आदि थे, इन राज्यों के शासकों ने बौद्ध धर्म अपनाया और वैदिक धर्म Vedic religion को त्याग दिया ।
ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक (Emperor Ashok) ने वैदिक धर्म का त्याग कर दिया और Buddhism में दीक्षित होकर बौद्ध धर्म के उपासक बन गये, सम्राट अशोक ने पूरे भारत के साथ-साथ विदेशों में भी बौद्ध धम्म का प्रचार (Publicity) किया, प्रथम शताब्दी में राजा कनिष्क और छठी शताब्दी में राजा हर्षवर्धन ने भी वैदिक धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म के उपासक Worshiper बन गए । वैदिक धर्म से लोगों का मोह भंग होना हमेशा जारी रहा और हमेशा से वैदिक धर्म में क्षरण (टूटन)होता रहा है ।
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Nah it Achchha lakh Hai jay Bheem
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