क्या दलित हिन्दु शुद्र हैं ?
दलित शब्द को शूद्र शब्द का पर्यायवाची शब्द समझा जाने लगा है .संजीव जायसवाल की फिल्म Shudra the Rising में दलित वर्ग (अनुसूचित जाति ) Schedule caste को शुद्र के रूप में दिखाया गया है, जबकि ब्राह्मण साहित्य (वैदिक साहित्य) में दलित वर्ग को शूद्र वर्ग में शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि दलित वर्ग चारों वर्णों और ब्राह्मण धर्म से बाहर बाबा साहिब की लिखी पुस्तक शूद्रों की खोज (Who was shudra )के पेज नं. 20 में लिखा, कि“ सवर्ण का अर्थ है ,कि चारों वर्णों में से किसी एक का होना” अवर्ण का अर्थ है ,कि चारों वर्ण से अलग होना, ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य तथा शूद्र सवर्ण है और अछूत (Untouchables) अतिशुद्र अवर्ण है ।
वरिष्ठ धर्मसूत्र में कहा गया है ,कि कृपण ,श्रोत,होत्र,बीमार,कैदी,सोम बेचने वाला बढ़ई, धोबी ,शराब बेचने वाले, जासूस ,प्याज खाने वाले तथा मोची का दिया हुआ भोजन न शूद्र का दिया हुआ भोजन भी न खावें।
वरिष्ठ धर्मसूत्र में बढ़ई, धोबी और मोची को अलग दर्जा दिया गया और शूद्र को अलग दर्जा गया है इसका मतलब है ,कि मोची,बढ़ई ,धोबी और SC ST की गणना शूद्र वर्ग में नहीं की जाती थी . बल्कि दलित वर्ग को अवर्ण का दर्जा प्राप्त था ,शास्त्र में अंत्यज कहा गया है, जिसका अर्थ होता हैं अंत में मतलब चारों वर्णों के अंत में ब्राह्मण धर्म (वैदिक धर्म) से बाहर महात्मा फुले के द्वारा लिखी गई पुस्तक गुलामगिरी Gulamgiri के पेज नंबर 67 पर महार जाति को महाअरी क्षत्रिय लिखा है। मतलब महाराष्ट्र की महार जाति अछूत बनने से पहले क्षत्रिय वर्ण में आती होगी बाद में महारों को बहिष्कृत कर दिया तथा अवर्ण (अंत्यज ) बना दिया होगा .
वर्ण व्यवस्था या जाति व्यवस्था:-
प्रारंभिक काल में भारतीय समाज में किसी भी तरह की वर्ण व्यवस्था नहीं थी, बाद में भारतीय समाज को अप्राकृतिक तौर से 4 भागों या 4 वर्ण में विभाजित किया गया है. और ब्राह्मणों ने अपनी उच्चता और श्रेष्ठता को स्थाई कर लिया ,यह चार वर्ण थे ( ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य ,शूद्र) अप्राकृतिक तौर से 4 वर्ण बन जाने के बाद उस काल तक व्यक्तियों में किसी तरह की छुआछूत की प्रथा नहीं थी, न ही उस समय पर कोई बहिष्कृत या अंत्यज वर्ग था , लेकिन जैसा कि हम सभी जानते है ,कि ब्राह्मण धर्म में कई प्रकार के अंधविश्वासों (Superstiitious) और अंधश्रद्धा से भरा पड़ा है, यहाँ जन्म, मृत्यु और रजोधर्म का अपवित्रता (Impiety) (छूतक) के रूप में मानते . जब किसी के कुटुंब में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी, तो उस परिवार में अपवित्रता आ जाती थी, और उस कुटुम्ब को इतने दिनों तक अछूतों की तरह रहना पड़ता था, जब तक तक वे परिवार (Family) में अपवित्रता (Unholines) को दूर करने के लिए साफ सफाई नहीं कर लेते थे, तथा गंगा जैसी पवित्र मानने वाली नदियों में स्नान नहीं कर लेते थे एवं पंडित पुजारियों से धार्मिक कर्मकांड नहीं करवा लेते थे, इसी तरह प्रसव माता को अपवित्र समझते. परिवार (Family) के लोग Person उनका छुआ हुआ पानी तक नहीं पीते थे. जब तक उस महिला से पवित्र होने के लिए टोने-टोटके नहीं करवा लिये जाते थे ,इस घोर अंधविश्वास के कारण नवजात शिशु को भी अपनी मां का 6 दिनों तक दूध नहीं पिलाया जाता था. इसी तरह महिला जब माहवारी से होती थी ,तो उसे रसोईघर (kitchin) में जाने की अनुमति नहीं होती थी ।
कबीलों और रजवाड़ा में धन, जमीन चारागाहों के लिए आपसी संघर्ष होते थे, जिन कबीलों के लोग एक दूसरे से संघर्ष में हार जाते , वे अपने घर बार छोड़कर बाहर चले जाते थे, और अपने दूसरे राज्यों में छिपकर रहने लगते थे,,पराजित और छितरे (Scattered) हुए लोगों को दूसरे राज्य में जिंदा रहने के लिए वे मजबूरी में अपवित्र काम और व्यवसाय करने पड़ते थे, जो वहां स्थाई रूप से बसे व्यक्ति काम करने में शर्म महसूस करते थे, छितरे हुए लोगों को राज्य दंड प्राप्त व्यक्तियों को मृत्यु दंड देना पड़ता था ,तथा उन्हें उस मृत व्यक्ति के वस्त्र (Cloths) आभूषण लेने का अधिकार था, ऐसे व्यक्तियों को लोग चंडाल कहते थे । चांडालों को सबसे पहले वर्ण व्यवस्था से बहिष्कृत अवर्ण ( अंत्यज) अछूत (Untouchables) बना दिया था. जिन लोगों ने जन्म के समय गर्भवती माता के कपड़े धोये उन्हें भी अछूत अंत्यज घोषित कर दिया, जिन्होंने जन्म देने वाली माता का प्रसव के समय मदद की उनको भी अछूत अंत्यज (Untouchables) बना दिया गया .जिन-जिन लोगों को भी अपवित्रता से जुड़े काम करने पड़े उन्हें समय-समय पर हमेशा के लिए अछूत घोषित कर दिया गया ,जो व्यक्ति जन्म मृत्यु से जुड़ी, अपवित्रता दूर नहीं कर पाये उन्हें भी अछूत अपवित्र (Unholines) घोषित कर दिया गया।
लेखक :- भोलाराम
Nice good work jay bheem
ReplyDeleteThank You jay Bheem
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