मानवता के लिए आखिर बुद्ध धम्म ही क्यों ?
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तथागत गौतम बुद्ध |
भगवान गौतम बुद्ध :-
बौद्ध धर्म के संस्थापक (Founder) भगवान गौतम बुद्ध थे, इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था ,गौतम बुद्ध को एशिया का ज्योति पुंज Light of Asia कहा जाता है । गौतम बुद्ध का जन्म 544 ईशा पूर्व में कपिलवस्तु के लुंबिनी नामक स्थान पर हुआ था । इनके पिता शुद्धोधन शाक्य गणराज्य के मुखिया थे । इनकी माता का नाम महामाया था । सिद्धार्थ के जन्म के 7वें दिन महामाया की मृत्यु (Death) हो गई थी ,उनका लालन-पालन उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया जिनके साथ शुद्धोधन ने दूसरा विवाह कर लिया था ,गौतम बुद्ध का विवाह 16 वर्ष की आयु में यशोधरा के साथ हुआ इनके पुत्र का नाम राहुल था । सांसारिक समस्याओं से दुखी होकर सिद्धार्थ में 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग कर सन्यास धारण किया और 6 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा की रात को पीपल के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ ज्ञान प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ बुद्ध के नाम से जाने गये और जिस स्थान पर ज्ञान प्राप्त हुआ था वह स्थान बोधगया कहलाया ।
तथागत गौतम बुद्ध का उपदेश :-
भगवान गौतम बुद्ध ने उपदेश दिया है कि हमें किसी भी पवित्र बात को इसलिए नहीं माननी चाहिए कि वह वेदों में लिखी है, हमें कोई बात को इसलिए भी नहीं माननी चाहिए कि वह बात तुम्हें तुम्हारे गुरु ने बताई है, क्योंकि लोगों की गुरु के प्रति श्रद्धा (Reverence) होती है , किसी बात को इसलिए भी नहीं माननी चाहिए कि वह बात पुराने समय से चली आ रही है, और लोग उसे सही मानते हैं भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों से यह भी कहा कि किसी भी बात को इसलिए नहीं माननी चाहिए कि मैं कह रहा हूं , क्योंकि मेरे प्रति भी तुम्हारे मन में आदर और श्रद्धा (Reverence) है, किसी बात और विचार (Thought) को मानने से पहले उसे अपनी बुद्धि और विवेक से अच्छी तरह से जांच और परख लेनी चाहिए । जब लगे की कोई विचार सबके हित का है तब ही उस विचार को मानना चाहिए।
भगवान गौतम बुद्ध ने लोगों को मध्य मार्ग की शिक्षा दी व्यक्ति को न तो अपने शरीर को बहुत ज्यादा यातना (Torture) देनी चाहिए और न ही उसे विलासिता पूर्ण (Full of luxury) जीवन में डूबना चाहिए । यह मध्य मार्ग अष्टांगिक मार्ग कहलाता है, भगवान बुद्ध इस सिद्धांत को नहीं मानते थे ,कि किसी ईश्वर ने आदमी का निर्माण किया है अथवा वह ब्रह्मा के शरीर का अंश है भगवान बुद्ध वेदों द्वारा निर्मित चातुर्वर्ण्य व्यवस्था (Intricate system) को नहीं मानते थे।
भगवान बुद्ध ने बिना किसी भेदभाव की दी दीक्षा :-
भगवान बुद्ध के उपदेशों का उस समय के जनमानस पर बहुत तेजी से Effect पड़ा, भगवान बुद्ध ने अपने धम्म में जहां एक तरफ उस समय के राजाओं शासकों को जगह दी दूसरी तरफ नाई भंगी चांडालों अछूतों और स्त्रियों को भी जगह दी ।
भगवान गौतम बुद्ध के धम्म से प्रभावित होकर मगध नरेश विम्बिसार गौतम बुद्ध की शरण में गये तथा बौद्ध धम्म के उपासक बन गए तथा कौशल नरेश प्रसन्नजीत भी भगवान बुद्ध से प्रभावित होकर बुद्ध धम्म के उपासक बन गये । उस समय के कई राज्यों के शासक बुद्ध धम्म से प्रभावित होकर बौद्ध धम्म के उपासक बन गये । उस समय के कई राज्यों के शासकों ने बौद्ध धम्म ग्रहण किया । राजाओं और शासकों ने ही नहीं आम जनता (General public) को भी भगवान बुद्ध ने अपने धम्म में दीक्षित किया । भगवान तथागत गौतम बुद्ध स्त्रियों और पुरुषों में किसी भी प्रकार का भेद नहीं मानते थे । भगवान तथागत का मानना था कि पुरुषों की तरह स्त्रिया भी निर्वाण (Nirvana) प्राप्त कर सकती हैं । महाप्रजापति गौतमी पहली महिला थी , जिन्हें तथागत भगवान बुद्ध ने सबसे पहले धम्म में दीक्षा दी ।
भगवान तथागत बुद्ध ने किसी भी जाति या वर्ग के साथ भेदभाव नहीं किया, नाई जाति के उपाली को तथागत ने भिक्षु संघ में दीक्षित किया इसके अलावा भंगी समाज के भंगी सुणीत को भी तथागत ने भिक्षु संघ में दीक्षित किया । सोपाक तथा सुपित्य नाम की अछूतों (Untouchables) को तथागत ने बिना किसी भेदभाव के भिक्षु बनाकर भिक्षु संघ में जगह दी ब्राह्मणों को भी भगवान बुद्ध ने बिना भेदभाव की भिक्षु संघ में दीक्षित किया ।
सम्राट अशोक ने World में फैलाया Unleashed बुद्ध का संदेश :-
सम्राट अशोक के शासनकाल में बुद्ध धम्म विदेशों में फैल गया, सम्राट अशोक ने अपने दूतों और धर्मप्रचारकों को सीरिया, मिश्र, मैसिडोनिया, साइरीन, आदि देशो में भेजा, जो तथागत बुद्ध के संदेश (Massage) और सम्राट की शुभकामनाओं को लेकर पहुंचे। सम्राट अशोक ने अपने बेटे महेंद्र तथा बेटी संघमित्रा को मध्य एशिया तथा श्रीलंका में बुद्ध का संदेश लेकर भेजा और श्रीलंका वासियों ने बुद्ध धर्म को अपनाया । लगभग पूरे भारत में बौद्ध धम्म तेजी से फैल चुका था , इसका नतीजा यह हुआ कि लोग शाकाहारी बन गए शराब पीने से लोग बचने लगे यज्ञों में पशुओं का बलिदान रोक दिया गया । अक्सर ब्राह्मण लोग ही वैदिक धर्म (Vedic religion) का पालन करते थे, इसलिए वैदिक धर्म को ब्राह्मण धर्म कहा जाने लगा ।
ब्राह्मणों ने बुद्ध धम्म को बांटा :-
लगभग पूरे देश की जनता बुद्ध धम्म को स्वीकार कर चुके थी यहां तक कि ब्राह्मण भी बौद्ध धम्म के अनुयाई बन गये थे , कुछ ब्राह्मणों ने पूरे मन से बुद्ध धम्म अपनाया लेकिन कुछ ब्राह्मणों ने प्रथम सतावदी (First ever) में हुई चौथी बौद्ध संगति में महायान संप्रदाय बनाकर ,भगवान बुद्ध को विष्णु का अवतार घोषित कर भ्रामक कर बौद्ध धम्म को भारी नुकसान पहुँचाया । जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इंडिया के पेज क्रमांक 220 में लिखा है कि “ आदि शंकराचार्य ने भारत में व्यापक धर्म (Broad religion) के रूप में बुद्ध मत का अंत करने में मदद Help की, और इसके बाद ब्राह्मण धर्म ने बौद्ध मत को भाई की तरह गले लगा कर अपने में मिला लिया यही बुद्ध धम्म के पतन का मुख्य कारण है “
बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला इसलिए किया क्योंकि बुद्ध का धम्म भारत में ही उत्पन्न (Generate) हुआ है, कई शताब्दियों तक बुद्ध धम्म भारत के लोगों का धर्म रह चुका है, बुद्ध धम्म संसार में एक ऐसा धर्म है, जो मनुष्य को बुद्धि की किसी धर्म ग्रंथ, मसीहा या धर्म गुरुओ के उपदेशों की खूंटी से नहीं बांधता बुद्ध धम्म मनुष्य को अपनी बुद्धि और विवेक (Intelligence and discretion) से सोचने समझने की स्वतंत्रता और शक्ति देता है । बुद्ध धम्म की सबसे बड़ी विशेषता उसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण है, बुद्ध धम्म परलोकवाद , ईश्वरवाद और आत्मा की सत्यता में यकीन नहीं करता । संसार में फैले अनगिनत धर्मों में से बुद्ध धम्म अपनी अलग छवि रखता है और यह छवि बुद्ध के वैज्ञानिक दृष्टिकोण (scientific approach) में हैं ।
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Nice Post of Ujale ki aur Jay bheem
ReplyDeletevery nice
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